Aja Ekadashi (अजा एकादशी) 2020 कब है, उसकी व्रत विधि और कथा

 Aja Ekadashi 2020 Date: अजा एकादशी व्रत भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। इस बार यह तिथि 15 अगस्त शनिवार के दिन पड़ रही है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु जी को प्रिय होता है। इस दिन उनकी आराधना की जाती है। साथ ही इस दिन लक्ष्मी जी को भी पूजा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, अजा एकादशी व्रत से मनुष्य के समस्त प्रकार के पापों का नाश हो जाता है। जो इसका व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर अंत में विष्णु लोक में पहुंच जाता है। इस व्रत का फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में दान-स्नान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होता है। 



अजा एकादशी व्रत का मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ : 14 अगस्त 2020 शुक्रवार दोपहर 2 बजकर 5 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त : 15 अगस्त 2020 शनिवार शाम 2 बजकर 22 मिनट पर
अजा एकादशी पारणा मुहूर्त : सुबह 05:50:59 से 08:28:36 बजे तक (16 अगस्त 2020)
अवधि : 2 घंटे 37 मिनट


अजा एकादशी व्रत विधि

दशमी तिथि को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। 


प्रातः काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि करें।


भगवान् विष्णु और माँ लक्ष्मी के नियम सहित पूजन करें।


दिन भर निराहार रहते हुए शाम को फलाहार कर सकते हैं।


इस व्रत में रात्रि जागरण करें।


द्वादशी तिथि के दिन प्रातः ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान-दक्षिणा दें।


द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन करवाने के बाद उन्हें दान-दक्षिणा दें।


फिर स्वयं भोजन करें।




एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यदि आप किसी कारण से व्रत नहीं कर सकते है तो इस दिन मन में विष्णु भगवान का ध्यान करते हुए सात्विक रहें। झूठ न बोले, किसी का मन नहीं दुखाएं एवं पर निंदा से बचें।


अजा एकादशी व्रत कथा
पौराणिक काल में एक अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी हरिश्चंद्र नाम का चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। प्रभु इच्छा से उसने अपना राज्य स्वप्न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उन्हें अपनी स्त्री और पुत्र को भी बेच देना पड़ा। स्वयं वह एक चाण्डाल के दास बन गए। राजा ने उस चाण्डाल के यहाँ कफन लेने का काम किया, किन्तु उन्होंने इस मुश्किल काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। जब इसी प्रकार कई वर्ष बीत गये तो उन्हें अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगे। 

वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगे कि मैं क्या करूं? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊँ? एक बार की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठे थे कि गौतम् ऋषि उनके पास पहुंचे। हरिश्चन्द्र ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुख-भरी कथा सुनाई। राजा हरिश्चन्द्र की दुख-भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा- 'हे राजन! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। तुम उस एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।' 

महर्षि गौतम इतना कह कर चले गये। अजा नाम की एकादशी आने पर राजा हरिश्चन्द्र ने महर्षि के कहे अनुसार विधानपूर्वक उपवास तथा रात्रि जागरण किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गये। उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी। उन्होंने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवेन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया एवं अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र तथा आभूषणों से परिपूर्ण देखा। व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई। 

वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था, परन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई और अन्त समय में हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को चले गए।

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