एकादशी का महत्‍व, पूजाविधि और दान पुण्‍य का लाभ

 

परिवर्तनी एकादशी पर करवट लेते हैं भगवान विष्‍णु, जानिए महत्‍व और अन्य खास बातें

  





एकादशी का महत्‍व, पूजाविधि और दान पुण्‍य का लाभ

एकादशी तिथि यानी भगवान विष्‍णु की उपासना का पर्व तो कि महीने में 2 बार आता है। साल में कुल 24 एकादशी पड़ती है। जिनमें देवउठनी एकादशी और देवशयनी एकादशी का सर्वाधिक महत्‍व होता है। उसके बाद जो सबसे महत्‍वपूर्ण एकादशी पड़ती है वह परिवर्तनी एकादशी। परिवर्तनी एकादशी भाद्र मास के शुक्‍ल पक्ष की एकादशी होती है। इस बार यह एकादशी 29 अगस्‍त को है। आइए जानते हैं इस एकादशी का महत्‍व, पूजाविध और दान पुण्‍य का लाभ…

भगवान विष्‍णु लेते हैं करवट

पद्म पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी पर भगवान विष्‍णु 4 महीने के लिए निद्रा में चले जाते हैं और उसके बाद परिवर्तनी एकादशी के दिन भगवान विष्‍णु करवट लेते हैं और देवी-देवता इनकी पूजा करते हैं। इसी कारण इस एकादशी का नाम परिवर्तनी एकादशी पड़ा है। एकादशी तिथि पर व्रत करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्‍यता है कि इस दिन भगवान विष्‍णु के वामन रूप की पूजा होती है।

कृष्‍णजी ने युधिष्ठिर को बताया था महत्‍व

पद्म पुराण में वर्णित कथाओं के अनुसार, युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से एकादशी व्रत के महत्व को विस्तार से समझाने की विनती की। इस पर वासुदेव श्रीकृष्ण ने उन्हें सभी एकादशी का महत्व बताया। इसी क्रम में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी की कथा और महत्व को श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को इस प्रकार समझाया…
युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा, हे वासुदेव! भाद्रपद शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी का क्या नाम है? इसकी व्रत और पूजा विधि एवं इसका महात्म्य विस्तार से बताएं। तब भगवान श्नीकृष्ण ने युधिष्ठिर की विनती स्वीकार की और बोले, हे युधिष्ठिर भाद्रपद के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी को पद्म एकादशी और परिवर्तिनी एकादशी कहते हैं। इस एकादशी पर व्रत और पूजन करने से पापों का नाश होता है, मोक्ष की प्राप्ति होती है और इच्छापूर्ति होती है। इस दिन भक्तों को मेरे वामन रूप की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान युधिष्ठिर को पूजा विधि, व्रत का महत्व और व्रत कथा सुनाते हैं।

पद्म एकादशी की कथा

त्रेतायुग में बली नामक एक असुर राजा था, लेकिन वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। विविध प्रकार के वेद सूक्तों और याचनाओं से प्रतिदिन भगवान का पूजन किया करता था। नित्य विधिपूर्वक यज्ञ आयोजन करता और ब्राह्मणों को भोजन कराता था। वह जितना धार्मिक था उतना ही शूरवीर भी। एक बार उसने इंद्रलोक पर अधिकार स्थापित कर लिया।
स्वर्ग लोक देवताओं से छिन जाने से देवतागण परेशान होकर भगवान विष्णु के पास गए। देवगुरु बृहस्पति सहित इंद्र देवता प्रभु के निकट जाकर हाथ जोड़कर वेद मंत्रों द्वारा भगवान की स्तुति करने लगे। तब भगवान विष्णु ने उनकी विनती सुनी और संकट टालने का वचन दिया। अपने वचन को पूरा करने के लिए उन्होंने वामन रूप धारण करके अपना पांचवां अवतार लिया और राजा बली से सब कुछ दान स्वरूप ले लिया।
भगवान वामन का रूप धारण करके राजा बली द्वारा आयोजित किए गए यज्ञ में पहुंचे और दान में तीन पग भूमि मांगी। इस पर राजा ने वामन का उपहास करते हुए कहा कि इतने छोटे से हो, तीन पग भूमि में क्या पाओगे? लेकिन वामन अपनी बात से अडिग रहे। इस पर राजा ने तीन पग भूमि देना स्वीकार किया और दो पग में धरती और आकाश माप लिए। इस पर वामन ने तीसरे पग के लिए पूछा कि राजन अब तीसरा पग कहां रखूं, इस पर राजा बली ने अपना सिर आगे कर दिया, क्योंकि वह पहचान गए थे कि वामन कोई और नहीं स्वयं भगवान विष्णु हैं।

श्रीहरि ने दिया वरदान

वामन रूप में मौजूद भगवान विष्णु राजा बली की भक्ति और वचनबद्धता से अत्यंत प्रसन्न हो गए और राजा बली को पाताल लोक वापस जाने के लिए कहा। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने राजा बली को वरदान दिया कि चतुर्मास अर्थात चार माह में उनका एक रूप क्षीर सागर में शयन करेगा और दूसरा रूप राजा बली के साथ पाताल में उस राज्य की रक्षा के लिए रहेगा।

दान का महत्‍व

एकादशी पर दान का विशेष महत्व है। धार्मिक आस्थाओं के आधार पर इस एकादशी के दिन चावल, दही, तांबा और चांदी की वस्तु का दान करना अतिशुभ फलदायी होता है। इस दिन भगवान को कमल अर्पित करने से भक्त उनके और अधिक निकट आ जाता है।

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