वृन्दावन आखिर है क्या? लोग क्यों यहां एक बार जाकर केवल तन से वापस आते हैं, मन वहीं छूट जाता है
*🌸 वृन्दावन आखिर है क्या? लोग क्यों यहां एक बार जाकर केवल तन से वापस आते हैं, मन वहीं छूट जाता है? 🌸🙏🏻*
वृन्दावन का आध्यातमिक अर्थ है- "वृन्दाया तुलस्या वनं वृन्दावनं" तुलसी का विषेश वन होने के कारण इसे वृन्दावन कहते हैं। वृन्दावन ब्रज का हृदय है जहाँ भगवान श्री राधाकृष्ण ने अपनी दिव्य लीलायें की हैं। इस दिव्य भूमि की महिमा बड़े-बड़े तपस्वी भी नहीं समझ पाते। ब्रह्मा जी का ज्ञान भी यहाँ के प्रेम के आगे फ़ीका पड़ जाता है। । इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि वृन्दावन का कण-कण रसमय है। रसिकों की राजधानी भी वृन्दावन को कहा जाता है। वृन्दावन श्री राधिका जी का निज धाम है। विद्वत्जन श्री धाम वृन्दावन का अर्थ इस प्रकार भी करते हैं "वृन्दस्य अवनं रक्षणं यत्र तत वृन्दावनं" जहाँ श्री राधारानी अपने भक्तों की दिन-रात रक्षा करती हैं, उसे वृन्दावन कहते हैं।
वृन्दावन तीर्थों का राजा है।
कृष्ण और वृन्दावन एक दूसरे का पर्याय हैं दोनों एक हैं अलग नही। जिस प्रकार श्रीमद भागवद गीता और भगवान की वाणी एक है उसी प्रकार कृष्ण और उनका यह प्रेममय, रसमय, चिन्मय धाम दोनों अभेद हैं ।
सूरदास जी ने वृन्दावन धाम की रज की महिमा का गुण गान करते हुए यह पद भी लिखा कि-
हम ना भई वृन्दावन रेणु,
तिन चरनन डोलत नंद नन्दन नित प्रति चरावत धेनु।
हम ते धन्य परम ये द्रुम वन बाल बच्छ अरु धेनु।
सूर सकल खेलत हँस बोलत संग मध्य पीवत धे।
आप कभी भी अनुभव कर सकते हैं कि वृन्दावन की भूमि पर कदम रखते ही शरीर मे एक रोमांच सा होने लगता है, जो वापिस वहां से दूर हटते ही समाप्त हो जाता है। किसी भी धाम में जाइये ऐसा अनुभव आपको नही होगा। हमारे श्रवण भी प्रत्येक क्षण राधे राधे का स्वर सुनते रहते हैं।
यहां आते ही भाव अपने आप प्रस्फुटित होने लगते हैं। बिहारीजी के समक्ष खड़े होकर उनको निहारते समय आपको कभी कुछ याद नही रहेगा कि आप कौन हैं, यहां क्यों आये। उनसे कुछ मांगना तो दूर की बात है। मंत्रमुग्ध, चित्रलिखित सी अवस्था!!
मैने आज तक धाम में जाकर कभी कुछ नही मांगा, ध्यान तक नही आता। जबकि मांगने को प्रभु की चरण सेवा और दर्शन की अभिलाषा सबको होती है।
वो केवल भाव के भूखे हैं, आपका भाव पढ़ते हैं। प्रेममय भाव हैं तो अवश्य दर्शन मिलेगा वरना कोई न कोई बाधा आ ही जाती है।
हम उनके दर्शन न कर पाने का ठीकरा भी उन्ही पर फोड़ते हैं कि हमे बुलाते नही। यह बिल्कुल असत्य, और गलत सोच है। वो सबकी राह देखते हैं, शर्त बस इतनी सी कि हमारे पांव प्रेम मय भक्ति के साथ उस राह पर कब पड़ते हैं!! राधा रानी ब्रज की अधिष्ठात्री देवी हैं, अश्रुपूरित, प्रेममयी प्रार्थना उनको पिघला देती है। उनकी आज्ञा के बिना कोई भी ब्रज भूमि पर पांव नही रख सकता।
हम सब राधा रानी से प्रार्थना करें कि हमे बारम्बार ब्रजदर्शन हों
*राधे राधे जपते रहो*
वृन्दावन का आध्यातमिक अर्थ है- "वृन्दाया तुलस्या वनं वृन्दावनं" तुलसी का विषेश वन होने के कारण इसे वृन्दावन कहते हैं। वृन्दावन ब्रज का हृदय है जहाँ भगवान श्री राधाकृष्ण ने अपनी दिव्य लीलायें की हैं। इस दिव्य भूमि की महिमा बड़े-बड़े तपस्वी भी नहीं समझ पाते। ब्रह्मा जी का ज्ञान भी यहाँ के प्रेम के आगे फ़ीका पड़ जाता है। । इसमें तनिक भी सन्देह नहीं है कि वृन्दावन का कण-कण रसमय है। रसिकों की राजधानी भी वृन्दावन को कहा जाता है। वृन्दावन श्री राधिका जी का निज धाम है। विद्वत्जन श्री धाम वृन्दावन का अर्थ इस प्रकार भी करते हैं "वृन्दस्य अवनं रक्षणं यत्र तत वृन्दावनं" जहाँ श्री राधारानी अपने भक्तों की दिन-रात रक्षा करती हैं, उसे वृन्दावन कहते हैं।
वृन्दावन तीर्थों का राजा है।
कृष्ण और वृन्दावन एक दूसरे का पर्याय हैं दोनों एक हैं अलग नही। जिस प्रकार श्रीमद भागवद गीता और भगवान की वाणी एक है उसी प्रकार कृष्ण और उनका यह प्रेममय, रसमय, चिन्मय धाम दोनों अभेद हैं ।
सूरदास जी ने वृन्दावन धाम की रज की महिमा का गुण गान करते हुए यह पद भी लिखा कि-
हम ना भई वृन्दावन रेणु,
तिन चरनन डोलत नंद नन्दन नित प्रति चरावत धेनु।
हम ते धन्य परम ये द्रुम वन बाल बच्छ अरु धेनु।
सूर सकल खेलत हँस बोलत संग मध्य पीवत धे।
आप कभी भी अनुभव कर सकते हैं कि वृन्दावन की भूमि पर कदम रखते ही शरीर मे एक रोमांच सा होने लगता है, जो वापिस वहां से दूर हटते ही समाप्त हो जाता है। किसी भी धाम में जाइये ऐसा अनुभव आपको नही होगा। हमारे श्रवण भी प्रत्येक क्षण राधे राधे का स्वर सुनते रहते हैं।
यहां आते ही भाव अपने आप प्रस्फुटित होने लगते हैं। बिहारीजी के समक्ष खड़े होकर उनको निहारते समय आपको कभी कुछ याद नही रहेगा कि आप कौन हैं, यहां क्यों आये। उनसे कुछ मांगना तो दूर की बात है। मंत्रमुग्ध, चित्रलिखित सी अवस्था!!
मैने आज तक धाम में जाकर कभी कुछ नही मांगा, ध्यान तक नही आता। जबकि मांगने को प्रभु की चरण सेवा और दर्शन की अभिलाषा सबको होती है।
वो केवल भाव के भूखे हैं, आपका भाव पढ़ते हैं। प्रेममय भाव हैं तो अवश्य दर्शन मिलेगा वरना कोई न कोई बाधा आ ही जाती है।
हम उनके दर्शन न कर पाने का ठीकरा भी उन्ही पर फोड़ते हैं कि हमे बुलाते नही। यह बिल्कुल असत्य, और गलत सोच है। वो सबकी राह देखते हैं, शर्त बस इतनी सी कि हमारे पांव प्रेम मय भक्ति के साथ उस राह पर कब पड़ते हैं!! राधा रानी ब्रज की अधिष्ठात्री देवी हैं, अश्रुपूरित, प्रेममयी प्रार्थना उनको पिघला देती है। उनकी आज्ञा के बिना कोई भी ब्रज भूमि पर पांव नही रख सकता।
हम सब राधा रानी से प्रार्थना करें कि हमे बारम्बार ब्रजदर्शन हों
*राधे राधे जपते रहो*
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