शीतला अष्टमी: कब पूजे, कैसे पूजे, क्यों पूजे, क्या बनाए इस दिन और क्या करे क्या ना करें सम्पूर्ण जानकारी

शीतला अष्टमी हिन्दुओं का एक त्योहार है। जिसमें शीतला माता का व्रत और पूजन किया जाता है।


शीतलामाता की पूजा चेत्र मास के कृ्णपक्ष की अष्टमी को किया जाता है लेकिन कुछ स्थानों पर इनकी पूजा होली के बाद पड़ने वाले पहले सोमवार या गुरुवार के दिन की जाती है।
   शीतला माता की पूजा का विधान भी विशिष्ट होता है। शीतला अष्टमी के एक दिन पहले उन्हें भोग लगाने के लिए खाना बनाया जाता है मतलब कि माता को बासी खाने का भोग लगाया जाता है ठंडे खाने का इसीलिए इस त्योहार को बसोड़ा भी कहते है।
    अष्टमी के दिन बासी खाना ही माता को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता है और भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।
   ऐसी मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना बंद कर दिया जाता है।
    ये ऋतु का अंतिम दिन होता है जब बासी खाना खा सकते है।
प्राचीनकाल से ही शीतला माता का बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी शीतला का वाहन गंदर्भ बताया है। ये हाथों में कलश,सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इन बातों का प्रतीकात्मक महत्व होता है। चेचक का रोगी व्यग्रतामें वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत:कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के दाग मिट जाते हैं। शीतला-मंदिरों में प्राय: माता शीतला को गर्दभ पर ही आसीन दिखाया गया है।स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है।
ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी [झाडू] होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से हमारा तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।
मान्यता अनुसार इस व्रत को करनेसे शीतला देवी प्रसन्‍न होती हैं और व्रती के कुल में दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गन्धयुक्त फोडे, नेत्रों के समस्त रोग, शीतलाकी फुंसियोंके चिन्ह तथा शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं।
    शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। आज भी लाखों लोग इस नियम का बड़ी आस्था के साथ पालन करते हैं। शीतला माता की उपासना अधिकांशत: वसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में होती है। शीतला (चेचक रोग) के संक्रमण का यही मुख्य समय होता है। इसलिए इनकी पूजा का विधान पूर्णत: सामयिक है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है।
आधुनिक युग में भी शीतला माता की उपासना स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण सर्वथा प्रासंगिक है। भगवती शीतला की उपासना से स्वच्छता और पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रेरणा मिलती है।
पूजा विधि:-माता शीतला को बासी भोजन का भोग लगाने की प्रथा है।  इस दिन घर में ताजा खाना नहीं बनता, महिलाए एक दिन पहले रात को ही खाना बना लेती हैं, उसी खाने से माता शीतला की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि माता शीतला शांति की देवी हैं जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों से भक्तों की रक्षा करती हैं। इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान किया जाता है। माता शीतला की पूजा का सामान लेकर माता शीतला मंदिर में और होलिका दहन की जगह पर भोग लगाया जाता है।  इसके बाद शीतला व्रत की कथा सुनने के बाद घर आकर मुख्य प्रवेश द्वार के दोनों ओर हल्दी से हाथ के टीका लगाए जाते हैं। मंदिर से लाए गए जल पूरे घर में छींट देते हैं। इससे शीतला माता की कृपा बनी रहती है और रोगों से घर की सुरक्षा होती है।

मान्यताओं के अनुसार शीतला अष्टमी के दिन ये काम बिल्कुल भी नहीं करने चाहिए
गरम चीजों का सेवन न करें.
- इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाना चाहिए.
- अगले दिन का खाना एक दिन पहले ही बना लें.
- खाना बनाने की शुरुआत सूर्यास्त के बाद ही करें.
- इस दिन बासी चीजों का ही सेवन करना चाहिए.
- बासी के साथ-साथ ठंडी चीजें ही खानी चाहिए.
- इस दिन ठंडी चीजें खाने का मतलब होता है शरीर को आने वाली गर्मी के लिए तैयार करना. 
- प्याज और लहसुन बिल्कुल न खाएं.

क्या बनाना चाहिए जिससे प्रसन हो जाए शीतला माता:-

शीतला माता को चेचक जैसे रोग की देवी माना गया है. माता को ठंडी चीजें बहुत पसंद हैं. इसलिए उन्हें बासी और ठंडी चीजों का ही भोग लगाया जाता है. सब कुछ एक दिन पहले यानी सप्तमी की रात को ही बना लिया जाता है.

भोग में खास तौर पर मीठे चावल तो बनाए ही जाते हैं. चावल गुड़ या गन्ने के रस से बनाए जाते हैं. आप चाहें तो बासी चावल में बूरा भी मिला सकते हैं. मीठे चावल के अलावा पूरी, पुआ, हलवा आदि भी रखा जाता है. भिगोई हुई काली उडद और चने की दाल भी थाली में रखी जाती है. चूंकि दही ठंडी होता है तो प्रसाद में दही भी रखा जाता है. इनके साथ ही ठंडे पानी का लोटा भी रखा जाता है.

सुबह-सुबह नहा धोकर शीतला माता की विधिवत पूजा कर उनको भोग लगाया जाता है. पूजा के बाद सबसे अंत में जल चढ़ाया जाता है. बचे हुए पानी को घर में छिड़ककर बाकी को पूजा स्थान पर रख दिया जाता है. बची हुई पूजा की सामग्री को गाय या ब्राह्मण को दान कर देना चाहिए.

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