❤ ठाकुर जी का प्रसादम रोटी ❤
Jai Shree Radhe Krishna ji .......❤ ठाकुर जी का प्रसादम रोटी ❤
एक बार आवश्य पड़ना मेरा निवेदन है
मै वो खुश नसीब "रोटी" हूँ, जिसे मन्दिर में ठाकुर जी के कर्मठ सेवादार बड़ी श्रद्धा और प्रेम से बेलते और पकाते हैं.।
फिर एक सुंदर सी थाली में मुझे रख कर, एक रंग बिरंगे रेशमी रूमाल से ढक कर, बड़े मान सम्मान के साथ मुझे ठाकुर जी के दरबार के अन्दर लाया जाता है.।
फिर मुझे ठाकुर जी के बगल में रखी एक आलीशान मेज पर रखा जाता है, और मै लगभग 15 मिनट तक ठाकुर जी के समक्ष रहती हूँ .। और ये 15 मिनट मेरी ज़िन्दगी के सब से खुशनुमा पल होते हैं, जब मैं ठाकुर जी के इतने निकट से दर्शन करती हूँ। और शब्द सुन कर मुझमें और भी मिठास आ जाती है।
इस दौरान मैं ठाकुर जी से विनती करती हूँ, कि हे ठाकुर जी, मुझे ग्रहण कीजिये, और ठाकुर जी जैसे ही मुझे अपने मुख से स्पर्श करते हैं, तब मैं सिर्फ़ रोटी नहीं रहती, बल्कि रोटी प्रसाद बन जाती हूँ।
और जब मुझे वापिस रसोई घर तक लाया जाता है, तो रास्ते में सारी संगत हाथ जोड़ कर झुक कर प्रणाम करती है, क्योंकि मैं तब तक अमृत युक्त हो चुकी होती हूँ।
और जब मैं संगत की थाली तक पहुँचती हूँ, तो ऐसी औषधि बन जाती हूँ, जिससे हर असाध्य रोग भी शांत हो जाता है।
नाम मेरा हो जाता है, परंतु चिकित्सा ठाकुर
जी ही करते हैं, मैं केवल आटे को पानी में गूंध कर नहीं बनाई जाती, बल्कि समर्पण के आटे को सिमरन के पानी में गूंध कर बनाई जाती हूँ ! राधे राधे राधे राधे जी 🙏🙏🙏🙏
एक बार आवश्य पड़ना मेरा निवेदन है
मै वो खुश नसीब "रोटी" हूँ, जिसे मन्दिर में ठाकुर जी के कर्मठ सेवादार बड़ी श्रद्धा और प्रेम से बेलते और पकाते हैं.।
फिर एक सुंदर सी थाली में मुझे रख कर, एक रंग बिरंगे रेशमी रूमाल से ढक कर, बड़े मान सम्मान के साथ मुझे ठाकुर जी के दरबार के अन्दर लाया जाता है.।
फिर मुझे ठाकुर जी के बगल में रखी एक आलीशान मेज पर रखा जाता है, और मै लगभग 15 मिनट तक ठाकुर जी के समक्ष रहती हूँ .। और ये 15 मिनट मेरी ज़िन्दगी के सब से खुशनुमा पल होते हैं, जब मैं ठाकुर जी के इतने निकट से दर्शन करती हूँ। और शब्द सुन कर मुझमें और भी मिठास आ जाती है।
इस दौरान मैं ठाकुर जी से विनती करती हूँ, कि हे ठाकुर जी, मुझे ग्रहण कीजिये, और ठाकुर जी जैसे ही मुझे अपने मुख से स्पर्श करते हैं, तब मैं सिर्फ़ रोटी नहीं रहती, बल्कि रोटी प्रसाद बन जाती हूँ।
और जब मुझे वापिस रसोई घर तक लाया जाता है, तो रास्ते में सारी संगत हाथ जोड़ कर झुक कर प्रणाम करती है, क्योंकि मैं तब तक अमृत युक्त हो चुकी होती हूँ।
और जब मैं संगत की थाली तक पहुँचती हूँ, तो ऐसी औषधि बन जाती हूँ, जिससे हर असाध्य रोग भी शांत हो जाता है।
नाम मेरा हो जाता है, परंतु चिकित्सा ठाकुर
जी ही करते हैं, मैं केवल आटे को पानी में गूंध कर नहीं बनाई जाती, बल्कि समर्पण के आटे को सिमरन के पानी में गूंध कर बनाई जाती हूँ ! राधे राधे राधे राधे जी 🙏🙏🙏🙏
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