हरितालिका तीज/हरियाली तीज व्रत, कथा, विधि, महत्त्व 2018

हरितालिका तीज 2018
 | Hartalika Teej Vrat Katha Puja Vidhi Mahtva

Hartalika Teej Vrat Katha Puja Vidhi Mahtva Importance in Hindi हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी विस्तार से पढ़े एवं अपने घर में करें |

हरतालिका तीज का नाम सुनते ही महिलाओं एवम लड़कियों को एक अजीब सी घबराहट होने लगती हैं | वर्ष के प्रारम्भ से ही जब कैलेंडर घर लाया जाता हैं, कई महिलायें उसमे हरतालिका की तिथी देखती हैं | यूँ तो हरतालिक तीज बहुत उत्साह से मनाया जाता हैं, लेकिन उसके व्रत एवं पूजा विधी को जानने के बाद आपको समझ आ जायेगा कि क्यूँ हरतालिका का व्रत सर्वोच्च समझा जाता हैं और क्यूँ वर्ष के प्रारंभ से महिलायें तीज के इस व्रत को लेकर चिंता में दिखाई देती हैं |

हरतालिका तीज व्रत, कथा एवं पूजा विधी

Hartalika Teej Vrat Katha Puja Vidhi Mahtva in Hindi


हरतालिका तीज महत्व (Hartalika Teej Mahtva )

हरतालिका तीज का व्रत हिन्दू धर्म में सबसे बड़ा व्रत माना जाता हैं | यह तीज का त्यौहार भादो की शुक्ल तीज को मनाया जाता हैं | खासतौर पर महिलाओं द्वारा यह त्यौहार मनाया जाता हैं | कम उम्र की लड़कियों के लिए भी यह हरतालिका का व्रत क्ष्रेष्ठ समझा गया हैं | हरतालिका तीज में भगवान शिव, माता गौरी एवम गणेश जी की पूजा का महत्व हैं | यह व्रत निराहार एवं निर्जला किया जाता हैं | रत जगा कर नाच गाने के साथ इस व्रत को किया जाता हैं |

हरतालिका नाम क्यूँ पड़ा ?

माता गौरी के पार्वती रूप में वे शिव जी को पति रूप में चाहती थी जिस हेतु उन्होंने काठी तपस्या की थी उस वक्त पार्वती की सहेलियों ने उन्हें अगवा कर लिया था | इस करण इस व्रत को हरतालिका कहा गया हैं क्यूंकि हरत मतलब अगवा करना एवम आलिका मतलब सहेली अर्थात सहेलियों द्वारा अपहरण करना हरतालिका कहलाता हैं |

शिव जैसा पति पाने के लिए कुँवारी कन्या इस व्रत को विधी विधान से करती हैं |

हरतालिका तीज  कब मनाई जाती है और मुहूर्त क्या है? (Hartalika Teej 2018Date and Muhurat)

हरितालिका तीज भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है. यह आमतौर पर अगस्त – सितम्बर के महीने में ही आती है. इसे गौरी तृतीया व्रत भी कहते है. यह इस वर्ष12 सेप्टेंबर, दिन बुधवार को मनाई जाएगी.

प्रातः काल हरितालिका पूजा मुहूर्त 05:58 से 08:322 घंटा 35 मिनटप्रदोषकाल  हरितालिका पूजा मुहूर्त 18:47 से 20:271 घंटा 39 मिनट

हरतालिका तीज नियम (Hartalika Teej Rules) :

हरतालिका व्रत निर्जला किया जाता हैं, अर्थात पूरा दिन एवं रात अगले सूर्योदय तक जल ग्रहण नहीं किया जाता |हरतालिका व्रत कुवांरी कन्या, सौभाग्यवती महिलाओं द्वारा किया जाता हैं |इसे विधवा महिलायें भी कर सकती हैं |हरतालिका व्रत का नियम हैं कि इसे एक बार प्रारंभ करने के बाद छोड़ा नहीं जा सकता | इसे प्रति वर्ष पुरे नियमो के साथ किया जाता हैं|हरतालिका व्रत के दिन रतजगा किया जाता हैं | पूरी रात महिलायें एकत्र होकर नाच गाना एवम भजन करती हैं | नये वस्त्र पहनकर पूरा श्रृंगार करती हैं |हरतालिका व्रत जिस घर में भी होता हैं | वहाँ इस पूजा का खंडन नहीं किया जा सकता अर्थात इसे एक परम्परा के रूप में प्रति वर्ष किया जाता हैं |सामान्यतह महिलायें यह हरतालिका पूजन मंदिर में करती हैं |

हरतालिका के व्रत से जुड़ी कई मान्यता हैं, जिनमे इस व्रत के दौरान जो सोती हैं, वो अगले जन्म में अजगर बनती हैं, जो दूध पीती हैं, वो सर्पिनी बनती हैं, जो व्रत नही करती वो विधवा बनती हैं, जो शक्कर खाती हैं मक्खी बनती हैं, जो मांस खाती शेरनी बनती हैं, जो जल पीती हैं वो मछली बनती हैं, जो अन्न खाती हैं वो सुअरी बनती हैं जो फल खाती है वो बकरी बनती हैं | इस प्रकार के कई मत सुनने को मिलते हैं |

हरतालिका पूजन सामग्री (Hartalika Teej Puja Samgri List)

क्रहरतालिका पूजन सामग्री1फुलेरा विशेष प्रकार से  फूलों से सजा होता |2गीली काली मिट्टी अथवा बालू रेत3केले का पत्ता4सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते5बैल पत्र, शमी पत्र, धतूरे का फल एवं फूल, अकाँव का फूल, तुलसी, मंजरी |6जनैव, नाडा, वस्त्र,7माता गौरी के लिए पूरा सुहाग का सामान जिसमे चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, मेहँदी आदि मान्यतानुसार एकत्र की जाती हैं | इसके अलावा बाजारों में सुहाग पुड़ा मिलता हैं जिसमे सभी सामग्री होती हैं |  8घी, तेल, दीपक, कपूर, कुमकुम, सिंदूर, अबीर, चन्दन, श्री फल, कलश |9पञ्चअमृत- घी, दही, शक्कर, दूध, शहद |

 हरतालिका तीज पूजन विधी (Hartalika Teej Pujan Vidhi)

हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं | प्रदोष काल अर्थात दिन रात के मिलने का समय |हरतालिका पूजन के लिए शिव, पार्वती एवं गणेश जी की प्रतिमा बालू रेत अथवा काली मिट्टी से हाथों से बनाई जाती हैं |फुलेरा बनाकर उसे सजाया जाता हैं |उसके भीतर रंगोली डालकर उस पर पटा अथवा चौकी रखी जाती हैं | चौकी पर एक सातिया बनाकर उस पर थाल रखते हैं | उस थाल में केले के पत्ते को रखते हैं |तीनो प्रतिमा को केले के पत्ते पर आसीत किया जाता हैं |सर्वप्रथम कलश बनाया जाता हैं जिसमे एक लौटा अथवा घड़ा लेते हैं | उसके उपर श्रीफल रखते हैं | अथवा एक दीपक जलाकर रखते हैं | घड़े के मुंह पर लाल नाडा बाँधते हैं | घड़े पर सातिया बनाकर उर पर अक्षत चढ़ाया जाता हैं |कलश का पूजन किया जाता हैं | सबसे पहले जल चढ़ाते हैं, नाडा बाँधते हैं | कुमकुम, हल्दी चावल चढ़ाते हैं फिर पुष्प चढ़ाते हैं |कलश के बाद गणेश जी की पूजा की जाती हैं |उसके बाद शिव जी की पूजा जी जाती हैं |
     उसके बाद माता गौरी की पूजा की जाती हैं | उन्हें सम्पूर्ण श्रृंगार चढ़ाया जाता हैं |इसके बाद हरतालिका की कथा पढ़ी जाती हैं |फिर सभी मिलकर आरती की जाती हैं जिसमे सर्प्रथम गणेश जी कि आरती फिर शिव जी की आरती फिर माता गौरी की आरती की जाती हैं |पूजा के बाद भगवान् की परिक्रमा की जाती हैं |रात भर जागकर पांच पूजा एवं आरती की जाती हैं |सुबह आखरी पूजा के बाद माता गौरा को जो सिंदूर चढ़ाया जाता हैं | उस सिंदूर से सुहागन स्त्री सुहाग लेती हैं |ककड़ी एवं हलवे का भोग लगाया जाता हैं | उसी ककड़ी को खाकर उपवास तोडा जाता हैं |अंत में सभी सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी एवं कुण्ड में विसर्जित किया जाता हैं |

हरतालिका तीज व्रत कथा  (Hartalika Teej Vrta Katha):

यह व्रत अच्छे पति की कामना से एवं पति की लम्बी उम्र के लिए किया जाता हैं |

शिव जी ने माता पार्वती को विस्तार से इस व्रत का महत्व समझाया – माता गौरा ने सती के बाद हिमालय के घर पार्वती के रूप में जन्म लिया | बचपन से ही पार्वती भगवान शिव को वर के रूप में चाहती थी | जिसके लिए पार्वती जी ने कठोर ताप किया उन्होंने कड़कती ठण्ड में पानी में खड़े रहकर, गर्मी में यज्ञ के सामने बैठकर यज्ञ किया | बारिश में जल में रहकर कठोर तपस्या की | बारह वर्षो तक निराहार पत्तो को खाकर पार्वती जी ने व्रत किया | उनकी इस निष्ठा से प्रभावित होकर भगवान् विष्णु ने हिमालय से पार्वती जी का हाथ विवाह हेतु माँगा | जिससे हिमालय बहुत प्रसन्न हुए | और पार्वती को विवाह की बात बताई | जिससे पार्वती दुखी हो गई | और अपनी व्यथा सखी से कही और जीवन त्याग देने की बात कहने लगी | जिस पर सखी ने कहा यह वक्त ऐसी सोच का नहीं हैं और सखी पार्वती को हर कर वन में ले गई | जहाँ पार्वती ने छिपकर तपस्या की | जहाँ पार्वती को शिव ने आशीवाद दिया और पति रूप में मिलने का वर दिया |

हिमालय ने बहुत खोजा पर पार्वती ना मिली | बहुत वक्त बाद जब पार्वती मिली तब हिमालय ने इस दुःख एवं तपस्या का कारण पूछा तब पार्वती ने अपने दिल की बात पिता से कही | इसके बाद पुत्री हठ के करण पिता हिमालय ने पार्वती का विवाह शिव जी से तय किया |

इस प्रकार हरतालिक व्रत व पूजन प्रति वर्ष भादो की शुक्ल तृतीया को किया जाता हैं |

हरतालिका तीज व्रत एवं पूजा विधी यह आर्टिकल आपको कैसा लगा कमेंट करके जरूर से बताए।

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