लड्डू गोपाल जी की छाती पर बने चरण चीन का रहस्य
जानिये लड्डू गोपालजी की छाती पर बने “चरण चिन्ह” के पीछे की कहानी
क्या आप जानते हैं की भगवान श्रीकृष्ण के विग्रह लड्डू गोपाल की छाती पर चरण चिन्ह (Footprint on laddu gopal chest) किसका है,? और यह चरण चिन्ह उनकी छाती पर क्यों और कैसे अंकित हुआ ! ये चिन्ह भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरुप लड्डू गोपाल और युगल स्वरूप सभी में चिन्हित होता है। तो आइए आप भी जानें इसके पीछे की रोचक जानकारी के बारे में।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय की बात है सरस्वती नदी के तट पर ऋषि-मुनियों में विवाद छिड़ गया। और विवाद का कारण था कि त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है। ऋषियों को जब कोई समाधान ना मिला तो ऋषियों में श्रेष्ठ भृगु ऋषि को यह जानने का दायित्व सौंपा गया। कि वह पता लगाएं कि त्रिदेवों में सर्वश्रेष्ठ कौन है।
त्रिदेवों की परीक्षा लेने के क्रम में भृगु ऋषि सबसे पहले ब्रह्म लोक पहुंचे। और बिना कारण ही ब्रह्मा जी पर क्रोधित हो गए। और बोले कि आपने मेरा अनादर किया है। ऐसा सुनकर ब्रह्मा जी को भी क्रोध आ गया। और ब्रह्मा जी बोले कि तुम अपने पिता से आदर करवाना चाहते हो। भृगु तुम कितने भी बड़े विद्वान क्यों ना हो जाओ तुम्हें बड़ों का आदर करना नहीं भूलना चाहिए। इस पर भृगु ऋषि बोले क्षमा कीजिए भगवान, लेकिन आप क्रोधित हो गए। मैं तो बस यह देख रहा था कि आपको क्रोध आता है कि नहीं।
और इसके बाद भृगु ऋषि महादेव की परीक्षा लेने कैलाश पर्वत पहुंचे। और वहां जाने पर उन्हें पता चला कि महादेव ध्यान में लीन हैं, उन्होंने नंदी से कहा कि महादेव को मेरे आने की सूचना दो। इस पर नंदी बोले कि मैं ऐसा नहीं कर सकता वो क्रोधित हो जाएंगे। इसके बाद भृगु ऋषि स्वयं वहां पहुंच गए। और महादेव का आवाह्न करके बोले कि ऋषि मुनियों के लिए तो आपका द्वार सदैव खुला रहता है महादेव।
भृगु ऋषि की आवाज से महादेव का ध्यान भंग हो गया। और महादेव क्रोधित होकर बोले कि भृगु तुम्हारी मौत तुम्हें यहां तक खींच लाई है। मैं अभी तुम्हें भस्म कर देता हूं। तभी माता पार्वती ने वहां आकर भगवान शिव से भृगु ऋषि के प्राणों का निवेदन किया। तब भगवान शिव का क्रोध शांत हो गया।
इसके बाद भृगु ऋषि श्रीहरि भगवान विष्णु के धाम में पहुंचे। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि भगवान विष्णु निद्रा की अवस्था में थे। तो भृगु ऋषि को लगा कि भगवान उन्हें देखकर जान-बूझकर सोने का नाटक कर रहे हैं। और उन्होंने अपने पैर से भगवान विष्णु की छाती पर वार किया।
इससे भगवान विष्णु की निद्रा भंग हो गई। और उठते ही उन्होंने भृगु ऋषि के पैर पकड़ लिए। ऋृषि के पांव को सहलाते हुए भगवान विष्णु ने कहा मुनिवर आपके पांव बड़े ही कोमल है और मेरा सीना व्रज कठोर है कहीं आपके पांव को चोट तो नहीं आई। इस पर भृगु ऋषि लज्जित भी हुए और प्रसन्न भी हुए।
इसके बाद उन्होंने भगवान श्रीहरि को त्रिदवों में सबसे श्रेष्ठ, सतोगुणी घोषित कर दिया। भृगु ऋषि के द्वारा मारी गई लात से उनके चरण चिन्ह भगवान विष्णु के स्वरूप, उनके विग्रहों की छाती पर मौजूद हैं। ये चरण चिन्ह लड्डू गोपाल, युगल स्वरूप समेत सभी विग्रहों की छाती पर मौजूद हैं।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें