अहोई अष्टमी

   Hello everyone,
          आज के इस पोस्ट में मैं अहोई माता कौन हैं, अहोई अष्टमी का व्रत, पूजन कैसे करते हैं और अहोई अष्टमी की कहानी क्या है यही सब शेयर करने वाली हु।
           सबसे पहले तो मैं ये बता देती हूँ कि अहोई अष्टमी का व्रत अपने बच्चो के लिए करते हैं।यह व्रत कार्तिक लगते ही अष्ठमी को किया जाता हैं।जिस वार की दीवाली होती हैं, अहोई अष्टमी भी उसी वार की पड़ती हैं।इस व्रत को वे स्त्रियां करती हैं, जिनके संतान होती हैं,या होने वाली होती हैं।






       बच्चो की माँ दिन भर व्रत रखें।शाम में अहोई माता का एक पोस्टर दीवार पर लगा कर पूजा करे या फिर आप चाहे तो दीवार पर बना भी सकती ह।पर पोस्टर लगा लेना थोड़ा easy होता हैं।


     व्रत की पूजन सामग्री:

          अहोई माता का पोस्टर
            रोली, चावल, दिया, महावर, फूल, मिट्टी के दो करवे,5 या7 सिक, एक लोटे में जल औऱ भोग के लिए हलवा।

      इसमे भोग के लिए हलवा ही बनता है किसी और चीज़ का भोग नही लगाया जाता हैं।

  व्रत की विधि:

                    पोस्टर दीवार पर लगा ले और दिया लगा कर सभी उपरोक्त सामग्री से पूजन कर लेते हैं और भोग लगा लेते हैं।और last में गेंहू के7 दाने हाथ में लेकर कहानी सुन लेते हैं।








अहोई अष्टमी या अहोई माता की कहानी:

         एक साहूकार था जिसके सात बेटे सात बहुए और एक बेटी थी। दीवाली से पहले कार्तिक बदी अष्टमी को सातो बहुए अपनी ननद के सात जंगल मे खदान में मिट्टी लेने गई।जहा से मिट्टी खोद रही थी वही स्याहू सेहे की मांद थी।मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ सेई का बच्चा मर गया। स्याहू माता ने उसको श्राप दिया जिसके कारण जो भी लड़का होता7 दिन बाद मर जाता।
        एक दिन पंडित जी को बुलाकर पूछा तो पंडित जी ने कहा कि तुम काली गाय की पूजा करो।काली गाय स्याहू माता की सहेली ह,वह तेरी कोख छोड़े तब तेरा बच्चा जियेगा।इसके बाद से वह प्रातःकाल उठकर चुपचाप काली गाय के नीचे सफाई आदि कर जाती। गौ माता सोची आजकल कौन मेरी सेवा कर रहा है सो आज देखूंगी।देख कर गौ माता उससे बोली कि किस चीज़ की इच्छा है जो तू मेरा इतना काम कर रही हैं? तो उन्होंने अपनी सारी बात बताई और क्षमा मांगी तब गौ माता उसे अपनी सहेली स्याहू माता के पास लेकर चली।रास्ते मे कड़ी धूप थी सो दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई।थोडी देर में एक सांप आया और उसी पेड़ पर गरुड़ पक्षी का बच्चा था उसको मारने लगा तब साहूकार की बहू ने साँप मारकर ढाल के निचे दबा दिया और बच्चो को बचा लिया।थोड़ी देर में गरुड़ पक्षी आई तो वहाँ खून देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी।तब बहु बोली कि मैने तेरे बच्चों को मारा नही
बल्कि साँप से बचाया हैं।
     गरुड़ पक्षी खुश हुई उससे और वर मांगने को कहा।तब साहूकार की बहू ने सात समुन्दर पार स्याहू माता पास छोड़ आने को कहा तो गरुड़ पक्षी ने उन्हें अपनी पीठ पर बैठा कर स्वाहु माता पास छोड़ दिया।स्याहू माता अपनी सहेली को देखकर बोली कि आ बहिन बहुत दिनों में आई, फिर कहने लगी कि बहिन मेरे सिर में जू पड़ गयी हैं।तब साहूकार की बहू ने जुए निकाल दी।इस पर स्याहू माता खुश हुई और 7 बेटे और7 बहुए हो का आर्शीवाद दिया।तो बहु बोली मेरे तो एक भी बेटा नहीं हैं।स्याहू माता बोली क्या बात है?तब वह बोली वचन दो तो बताऊ स्वाहु माता बोली वचन दिया।तब साहूकार की बहू बोली मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी हैं।यह सुनकर माता बोली तूने मुझे ठग लिया, मैं तेरी कोख खोलती नही पर अब खोलनी पड़ेगी। बहु खुश हो गई ।स्याहू माता ने कृपा कर कोख खोल दी।स्याहू माता ने जिस प्रकार बहु की कोख खोल बेटे बहु देने का आशीष दी उसी प्रकार सब को दे।
  !!जय अहोई माता की!!




कहानी सुनने के बाद तारो को अर्ध्य देकर वायना सासू माँ या ननद या जेठानी को पैर छू कर दे देते हैं और खाना खा लेते हैं।



मुझे आशा है कि यह पोस्ट आपके लिए काफी informative रही होगी। मिलती हु next पोस्ट में with a new post.... JMD








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