Devuthni gyaras... Tulasi vivaah...देवउठनी एकादशी

देव उठनी एकादशी प्रबोधनी ग्यारस तुलसी विवाह महत्व एवम पूजा विधि | Dev Uthani Gyaras Prabodhini Ekadashi Tulsi Vivah Katha Mahtva In Hindi


देव उठनी एकादशी प्रबोधनी ग्यारस तुलसी विवाह महत्व एवम पूजा विधि | Dev Uthani Gyaras Prabodhini Ekadashi Tulsi Vivah Katha Mahtva In Hindi

देव उठनी एकादशी जिसे प्रबोधनी एकादशी भी कहा जाता हैं. इसे पापमुक्त करने वाली एकादशी माना जाता है. सभी एकादशी पापो से मुक्त होने हेतु की जाती हैं. लेकिन इस एकादशी का महत्व बहुत अधिक माना जाता हैं. राजसूय यज्ञ करने से जो पुण्य की प्राप्ति होती हैं उससे कई अधिक पुण्य देवउठनी प्रबोधनी एकादशी का होता हैं.

देव उठनी एकादशी व प्रबोधनी ग्यारस, तुलसी विवाह महत्व एवम पूजा विधि

Dev Uthani Gyaras, Prabodhini Ekadashi Vrat, Tulsi Vivah Katha Mahtva In Hindi

इस दिन से चार माह पूर्व देव शयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु एवम अन्य देवता क्षीरसागर में जाकर सो जाते हैं. इसी कारण इन दिनों बस पूजा पाठ तप एवम दान के कार्य होते हैं. इन चार महीनो में कोई बड़े काम जैसे शादी, मुंडन संस्कार, नाम करण संस्कार आदि नहीं किये जाते हैं. यह सभी कार्य देव उठनी प्रबोधनी एकादशी से शुरू होते हैं.

इस दिन तुलसी विवाह का भी महत्व निकलता हैं. इस दिन तुलसी विवाह का आयोजन किया जाता हैं. इस प्रकार पुरे देश में शादी विवाह के उत्सव शुरू हो जाते हैं.



कब मनाई जाती हैं देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी ? (Dev Uthani Gyaras, Prabodhini Ekadashi 2018Date):

कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की ग्यारस के दिन देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी मनाई जाती हैं. यह दिन दिवाली के ग्यारहवे दिन आता हैं. इस दिन से सभी मंगल कार्यो का प्रारंभ होता हैं.

वर्ष 2018  में देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी 19 नवम्बर दिन सोमवार को मनाई जाएगी.

देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी का महत्व  (Dev Uthani Gyaras Prabodhini Ekadashi Mahatva):

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का महत्व सबसे अधिक माना जाता हैं. इसका कारण यह हैं कि उस दिन सूर्य एवम अन्य गृह अपनी स्थिती में परिवर्तन करते हैं, जिसका मनुष्य की इन्द्रियों पर प्रभाव पड़ता हैं. इन प्रभाव में संतुलन बनाये रखने के लिए व्रत का सहारा लिया जाता हैं. व्रत एवम ध्यान ही मनुष्य में संतुलित रहने का गुण विकसित करते हैं.

इसे पाप विनाशिनी एवम मुक्ति देने वाली एकादशी कहा जाता हैं. पुराणों में लिखा हैं कि इस दिन के आने से पहले तक गंगा स्नान का महत्व होता हैं , इस दिन उपवास रखने का पुण्य कई तीर्थ दर्शन, हजार अश्वमेघ यज्ञ एवम सौ राजसूय यज्ञ के तुल्य माना गया हैं.इस दिन का महत्व स्वयं ब्रम्हा जी ने नारद मुनि को बताया था, उन्होंने कहा था इस दिन एकाश्ना करने से एक जन्म, रात्रि भोज से दो जन्म एवम पूर्ण व्रत पालन से साथ जन्मो के पापो का नाश होता हैं.इस दिन से कई जन्मो का उद्धार होता हैं एवम बड़ी से बड़ी मनोकामना पूरी होती हैं.इस दिन रतजगा करने से कई पीढियों को मरणोपरांत स्वर्ग मिलता हैं.जागरण का बहुत अधिक महत्व होता है, इससे मनुष्य इन्द्रियों पर विजय पाने योग्य बनता हैं.इस व्रत की कथा सुनने एवम पढने से 100 गायो के दान के बराबर पुण्य मिलता हैं.किसी भी व्रत का फल तब ही प्राप्त होता हैं जब वह नियमावली में रहकर विधि विधान के साथ किया जाये.

इस प्रकार ब्रम्हा जी ने इस उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी व्रत का महत्व नारद जी को बताया एवम प्रति कार्तिक मास में इस व्रत का पालन करने को कहा.

उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी व्रत पूजा विधि (Dev Uthani Gyaras Prabodhini Ekadashi Pooja Vidhi):

इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म,स्नान आदि करना चाहिये.सूर्योदय के पूर्व ही व्रत का संकल्प लेकर पूजा करके सूर्योदय होने पर भगवान सूर्य देव को अर्ध्य अर्पित करते हैं.अगर स्नान के लिए नदी अथवा कुँए पर जाये तो अधिक अच्छा माना जाता हैं.इस दिन निराहार व्रत किया जाता हैं दुसरे दिन बारस को पूजा करके व्रत पूर्ण माना जाता हैं एवम भोजन ग्रहण किया जाता हैं.कई लोग इस दिन रतजगा कर नाचते, गाते एवम भजन करते हैं.इस दिन बैल पत्र, शमी पत्र एवम तुलसी चढाने का महत्व बताया जाता हैं.उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का महत्व होता हैं.

तुलसी विवाह कब मनाया जाता हैं ? (Tulsi Vivah 2018 Date):

यह तुलसी विवाह देव उठनी एकादशी के दिन कार्तिक मास शुक्ल पक्ष ग्यारस के दिन किया जाता है, लेकिन कई लोग इसे द्वादशी अर्थात देव उठनी एकादशी के अगले दिन किया जाता हैं.

वर्ष 2018 में तुलसी विवाह 19 नवम्बर सोमवार  के दिन किया जायेगा.

1देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी 19 नवम्बर

तुलसी विवाह का महत्व  (Tulsi Vivah Mahatva):

तुलसी एक गुणकारी पौधा हैं जिससे वातावरण एवम तन मन शुद्ध होते हैं. कैसे बना तुलसी का पौधा एवम तुलसी विवाह के पीछे क्या कथा हैं ? आगे पढिये :

तुलसी विवाह कथा (Tulsi Vivah Katha ):

तुलसी, राक्षस जालंधर की पत्नी थी, वह एक पति व्रता सतगुणों वाली नारी थी, लेकिन पति के पापों के कारण दुखी थी| इसलिए उसने अपना मन विष्णु भक्ति में लगा दिया था. जालंधर का प्रकोप बहुत बढ़ गया था, जिस कारण भगवान विष्णु ने उसका वध किया. अपने पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता तुलसी ने सतीधर्म को अपनाकर सती हो गई. कहते हैं उन्ही की भस्म से तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ और उनके विचारों एवम गुणों के कारण ही तुलसी का पौधा इतना गुणकारी बना. तुलसी के सदगुणों के कारण भगवान विष्णु ने उनके अगले जन्म में उनसे विवाह किया. इसी कारण से हर साल तुलसी विवाह मनाया जाता है|

इस प्रकार यह मान्यता हैं कि जो मनुष्य तुलसी विवाह करता हैं, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं. इस प्रकार देव उठनी ग्यारस अथवा प्रबोधिनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह का महत्व बताया गया हैं.

घरों में कैसे किया जाता हैं तुलसी विवाह ? (Tulsi Vivah Puja Vidhi) :

कई लोग इसे बड़े स्वरूप में पूरी विवाह की विधि के साथ तुलसी विवाह करते हैं.कई लोग प्रति वर्ष कार्तिक ग्यारस के दिन तुलसी विवाह घर में ही करते हैं.हिन्दू धर्म में सभी के घरो में तुलसी का पौधा जरुर होता हैं. इस दिन पौधे के गमले अथवा वृद्दावन को सजाया जाता हैं.विष्णु देवता की प्रतिमा स्थापित की जाती हैं.चारो तरफ मंडप बनाया जाता हैं. कई लोग फूलों एवम गन्ने के द्वारा मंडप सजाते हैं.तुलसी एवम विष्णु जी का गठबंधन कर पुरे विधि विधान से पूजन किया जाता हैं.कई लोग घरों में इस तरह का आयोजन कर पंडित बुलवाकर पूरी शादी की विधि संपन्न करते हैं.कई लोग पूजा कर ॐ नमो वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण कर विवाह की विधि पूरी करते हैं.कई प्रकार के पकवान बनाकर कर उत्सव रचा जाता हैं एवम नेवैद्य लगाया जाता हैं.परिवार जनों के साथ पूजा के बाद आरती करके प्रशाद वितरित किया जाता हैं.

इस प्रकार इस दिन से चार माह से बंद मांगलिक कार्यो का शुभारम्भ होता हैं.तुलसी विवाह के दिन दान का भी महत्व हैं इस दिन कन्या दान को सबसे बड़ा दान माना जाता हैं. कई लोग तुलसी का दान करके कन्या दान का पुण्य प्राप्त करते हैं।


हिन्दुओं धर्म में तुलसी को बड़ा पवित्र स्थान दिया गया है। यह लक्ष्मी व नारायण दोनों को समान रूप से प्रिय है। इसे 'हरिप्रिया' भी कहा गया है।


इसी के चलते बिना तुलसी के यज्ञ, हवन, पूजन, कर्मकांड, साधना व उपासना पूरे नहीं होते। यहां तक कि श्राद्ध, तर्पण, दान, संकल्प के साथ ही चरणामृत, प्रसाद व भगवान के भोग में भी तुलसी का होना अनिवार्य माना गया है।

  पुराणों के अनुसार कार्तिक शुक्ल  एकादशी के दिन ही भगवान श्री हरि पाताल लोक के राजा बलि के राज्य से चातुर्मास का विश्राम पूरा कर बैकुंठ लौटे थे।



भगवान के आगमन को देवउठनी एकादशी के रूप में भी मनाया जाता है। भारतीय समाज में तुलसी के पौधे को देवतुल्य मान ऊंचा स्थान दिया गया है। यह औषधि के साथ ही मोक्ष प्रदायिनी भी है। तुलसी के संबंध में जन्म-जन्मांतर के बारे में अनेक पौराणिक गाथाएं विद्यमान हैं। तुलसी के अन्य नामों में 'वृन्दा' और  'विष्णुप्रिया' खास माने जाते हैं।






घर में ऐसे करें तुलसी विवाह

  1. शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।  

2. तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।



3. तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।  

4. तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।  

5. गमले में सालिग्राम जी रखें।  

6. याद रखें सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।  

7. तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।  

8. गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।

9.  हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक अगर आता है तो वह अवश्य करें।  

10. देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।  

11. कपूर से आरती करें।  



12. प्रसाद चढ़ाएं।  

13. 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।

14. प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।  

15. प्रसाद वितरण अवश्य करें।

16. पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान इस मंत्र का उच्चारण करते हुए करें।

  'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।

  त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥'

  'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।

  गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिश:॥'

  'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'

17. तुलसी नामाष्टक:

  वृन्दा वृन्दावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी। पुष्पसारा नन्दनीच तुलसी कृष्ण जीवनी।।

  एतभामांष्टक चैव स्रोतं नामर्थं संयुक्तम। य: पठेत तां च सम्पूज् सौऽश्रमेघ फललंमेता।।

18. मां तुलसी से उनकी तरह पवित्रता का वरदान मांगें।

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