निर्जला एकादशी उपवास:निर्जला एकादशी व्रत 2020 तिथि: इस दिन मनाई जाएगी निर्जला एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत तोड़ने का सही समय

निर्जला एकादशी व्रत 2020 तिथि: इस दिन मनाई जाएगी निर्जला एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त और व्रत तोड़ने का सही समय


जो श्रद्धालु वर्ष की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है, उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए।


  

:साल की सभी चौबीस एकादशियों में से निर्जला एकादशी सबसे अधिक महत्वपूर्ण एकादशी है। बिना पानी के व्रत को निर्जला व्रत कहते हैं और निर्जला एकादशी का उपवास किसी भी प्रकार के भोजन और पानी के बिना किया जाता है। उपवास के कठोर नियमों के कारण सभी एकादशी व्रतों में निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन होता है। इस वर्ष निर्जला एकादशी 2 जून 2020 को मनाई जाएगी। निर्जला एकादशी व्रत को समय श्रद्धालु लोग भोजन ही नहीं बल्कि पानी भी ग्रहण नहीं करते हैं। जो श्रद्धालु वर्ष की सभी चौबीस एकादशियों का उपवास करने में सक्षम नहीं है, उन्हें केवल निर्जला एकादशी उपवास करना चाहिए क्योंकि निर्जला एकादशी उपवास करने से दूसरे सभी एकादशियों का लाभ मिल जाता है। निर्जला एकादशी का व्रत जयंती माह में शुक्ल पक्ष के दौरान किया जाता है। अंग्रेजी कैलेण्डर के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत मई या जून के महीने में होता है।

निर्जला एकादशी (निर्जला एकादशी सुभ मुहूर्त 2020) शुभ मुहूर्त 


निर्जला एकादशी मंगलवार, 2 जून, 2020 को

एकादशी तिथि प्रारम्भ - 01 जून, 2020 को 2:57 बजे पी.एम.

एकादशी तिथि समाप्त - 02 जून, 2020 को 12:04 बजे पी.एम.
3 जून को, पारण ((व्रत तोड़ने का) समय - 05:23 ए एम से 08:10 ए एम
निर्जला एकादशी कथा (निर्जला एकादशी 2020 कथा)
निर्जला एकादशी से संबंधित पौराणिक कथा के कारण इसे पाण्डव एकादशी और भीमसेनी एकादशी या भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पाण्डवों में दूसरे भाई भीमसेन खाने-पीने का अत्यधिक शौक़ीन था और अपनी भूख को नियन्त्रित करने में सक्षम नहीं था, इसी कारण वह एकादशी व्रत को नहीं कर पाता था। भीम के अलावा बाकि पाण्डव भाई और द्रौपदी वर्ष की सभी एकादशी व्रतों को पूरी श्रद्धा भक्ति से किया था। भीमसेन अपनी इस लाचारी और कमजोरी को लेकर परेशान थी। भीमसेन को लगता है कि वह एकादशी व्रत न करके भगवान विष्णु का अनादर कर रहा है। इस दुविधा से उभरने के लिए भीमसेन महर्षि व्यास के पास गए तब महर्षि व्यास ने भीमसेन को वर्ष में एक बार निर्जला एकादशी व्रत को करने की सलाह दी और कहा कि निर्जला एकादशी वर्ष की चौबीस एकादशी के रूप में है। इसी पौराणिक कथा के बाद निर्जला एकादशी भीमसेनी एकादशी और पाण्डव एकादशी के नाम से प्रसिद्ध हो गयी।
एकादशी व्रत का पारण
एकादशी के व्रत को समाप्त करने को पारण कहता हैं। एकादशी व्रत के अगले दिन सूर्योदय के बाद पारण किया जाता है। एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है। यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो गयी गयी हो तो एकादशी व्रत का पारण सूर्योदय के बाद होता है। द्वादशी तिथि के भीतर पारण न करना पाप करने के समान होता है। एकादशी व्रत का पारण हरी वासर के दौरान भी नहीं करना चाहिए। जो श्रद्धालु व्रत कर रहे हैं उन्हें व्रत तोड़ने से पहले हरि वासर समाप्त होने की प्रतिक्षा करनी चाहिए। हरि वासर द्वादशी तिथि की पहली एक चौथाई अवधि है। व्रत तोड़ने के लिए सबसे उपयुक्त समय प्रातःकाल होता है। व्रत करने वाले श्रद्धालुओं को मध्याह्न के दौरान व्रत तोड़ने से बचना चाहिए। कुछ कारणों की वजह से अगर कोई प्रातःकाल पारण करने में सक्षम नहीं है तो उसे मध्याह्न के बाद पारण करना चाहिए।
कभी कभी एकादशी व्रत लगातार दो दिनों के लिए हो जाता है। जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब स्मार्त-परिवारों वालों को पहले दिन एकादशी व्रत करना चाहिए। दुसरे दिन वाली एकादशी को दूजी एकादशी कहते हैं। सन्यासियों, विधवाओं और मोक्ष प्राप्ति के इच्छुक श्रद्धालुओं को दूजी एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए। जब-जब एकादशी व्रत दो दिन होता है तब-तब दूजी एकादशी और वैष्णव एकादशी एक ही दिन होते हैं।
प्रकाशित: शुक्र, 29 मई, 2020 9:26 | अपडेट किया गया: शुक्र, 29 मई, 2020 9:27 बजे


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