अर्थी में इस्तेमाल होने के बाद भी चिता में क्यों नहीं जलाई जाती बांस की लकड़ी? कारण भयभीत करने वाला है मृत्यु संस्कार में बांस की लकड़ी का महत्त्व

अर्थी में इस्तेमाल होने के बाद भी चिता में क्यों नहीं जलाई जाती बांस की लकड़ी? कारण भयभीत करने वाला है


मृत्यु संस्कार में बांस की लकड़ी का महत्त्व

मृत्यु संस्कार कार्यों में लाश को रखने के लिए अर्थी में तो इस लकड़ी को प्रयोग किया जाता है, लेकिन जलाते समय उसे हटा दिया जाता है। यकीन मानिए इसका वैज्ञानिक कारण बेहद भयभीत करने वाला है, जो आपने शायद ही कभी सोचा हो।

पितृ दोष कारक

शास्त्रों में भी वृक्षों की रक्षा को विशेष महत्व दिया गया है। वृक्षों की पूजा इसका उदाहरण हैं, लेकिन चंदन आदि सुगंधित वृक्षों की लकड़ियां कुछ विशेष कार्यों या मतलब से जलाने की बात कही गई है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि शास्त्रानुसार बांस की लकड़ी जलाना विशेष रूप से वर्जित है। ऐसा करना भारी पितृ दोष देने वाला माना गया है।

पर्यावरण संतुलन में आम वृक्षों की तरह उपयोगी

बांस की लकड़ी पर्यावरण संतुलन में आम वृक्षों की तरह ही उपयोगी है। मजबूत होने के कारण इसे फर्नीचर, कई प्रकार के सजावटी सामानों में भी उपयोग किया जाता है... तो इसे जलाना आम पेड़ों से ज्यादा खतरनाक क्यों है?

वैज्ञानिक कारण

आपको जानकर हैरानी होगी कि बांस की लकड़ी में लेड और कई प्रकार के भारी धातु होते हैं जो जलने के बाद अपने ऑक्साइड बनाते हैं। लेड जलकर लेड ऑक्साइड बनाते हैं जो न सिर्फ वातावरण को दूषित करता है बल्कि यह इतना खतरनाक है कि आपकी सांसों में जाकर लिवर और न्यूरो संबंधित परेशानियां भी दे सकता है।

अर्थी में प्रयोग का महत्त्व

लाश भारी होती है, इसके अलावा बांस की पतली कमानियों से शैय्या तैयार करना भी आसान होता है, इसलिए अर्थी में इसका इस्तेमाल किया जाता है लेकिन जलाने की मनाही है। संभवत: इसके ये वैज्ञानिक दुष्परिणाम ही इसका कारण रहे हों।

अनजाने में घरो में जल रहे हैं बांस

आपको जानकर हैरानी होगी कि बांस को भले ही आप समान्य रूप में जलाने में इस्तेमाल नहीं करते, लेकिन आज लगभग हर दिन लोग इसका प्रयोग घरों में जलाने में कर रहे हैं जिसका आपको पता भी नहीं है। अगरबत्ती में जो स्टिक प्रयोग की जाती है वह बांस ही होता है। इसके अलावा इसे बनाने में फेथलेट केमिकल का प्रयोग किया जाता है जो फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है।

न्यूरोटॉक्सिक धुआं

इसलिए अगरबत्ती का धुआं न्यूरोटॉक्सिक और हेप्टोटॉक्सिक होता है जो मस्तिष्क आघात, कैंसर का बड़ा कारण बनता है। हेप्टोटॉक्सिक लीवर को बुरी तरह प्रभावित करता है। शास्रों में अगरबत्ती के इस्तेमाल का कोई जिक्र भी नहीं है, बल्कि धूप और दिया जलाने की बात कही गई है

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